वीर्यरक्षा के उपाय

सादा रहन – सहन बनायें

काफी लोगों को यह भ्रम है कि जीवन तड़क – भड़कवाला बनाने से वे समाज में विशेष माने जाते हैं । वस्तुतः ऐसी बात नहीं है । इससे तो केवल अपने अहंकार का ही प्रदर्शन होता है । लाल रंग के भड़कीले एवं रेशमी कपड़े नहीं पहनो ।

तेल – फुलेल और भाँति – भाँति के इत्रों का प्रयोग करने से बचो । जीवन में जितनी तड़क – भड़क बढ़ेगी , इन्द्रियाँ उतनी चंचल हो उठेंगी , फिर वीर्यरक्षा तो दूर की बात है । इतिहास पर भी हम दृष्टि डालें तो महापुरुष हमें ऐसे ही मिलेंगे , जिनका जीवन प्रारंभ से ही सादगीपूर्ण था । सादा रहन – सहन तो बडप्पन का द्योतक है । दूसरों को देख कर उनकी अप्राकृतिक व अधिक आवश्यकताओंवाली जीवन शैली का अनुसरण नहीं करो ।

उपयुक्त आहार

ईरान के बादशाह बहमन ने एक श्रेष्ठ वैद्य से पूछा : “ दिन में मनुष्य को कितना खाना चाहिए ? ” “ सौ दिराम ( अर्थात् 31 तोला ) | “ वैद्य बोला | “ इतने से क्या होगा ? ” बादशाह ने फिर पूछा । वैद्य ने कहा : “ शरीर के पोषण के लिये इससे अधिक नहीं चाहिए | इससे अधिक जो कुछ खाया जाता है , वह केवल बोझा ढोना है और आयुष्य खोना है । ” लोग स्वाद के लिये अपने पेट के साथ बहुत अन्याय करते हैं , हँस – हँसकर खाते हैं | यूरोप का एक बादशाह स्वादिष्ट पदार्थ खूब खाता था । बाद में औषधियों द्वारा उलटी करके फिर से स्वाद लेने के लिये भोजन करता रहता था । वह जल्दी मर गया । आप स्वादलोलुप नहीं बनो । जिह्वा को नियंत्रण में रखो | क्या खायें , कब खायें , कैसे खायें और कितना खायें इसका विवेक नहीं रखा तो पेट खराब होगा , शरीर को रोग घेर लेंगे , वीर्यनाश को प्रोत्साहन मिलेगा और अपने को पतन के रास्ते जाने से नहीं रोक सकोगे । प्रेमपूर्वक , शांत मन से , पवित्र स्थान पर बैठ कर भोजन करो | जिस समय नासिका का दाहिना स्वर ( सूर्य नाड़ी ) चालू हो उस समय किया भोजन शीघ्र पच जाता है , क्योंकि उस समय जठराग्नि बड़ी प्रबल होती है । भोजन के समय यदि दाहिना स्वर चालू नहीं हो तो उसको चालू कर दो । उसकी विधि यह हैं : वाम कुक्षि में अपने दाहिने हाथ की मुठ्ठी रखकर कुक्षि को जोर से दबाओ या बाँयी ( वाम ) करवट लेट जाओ | थोड़ी ही देर में दाहिना याने सूर्य स्वर चालू हो जायेगा । रात्रि को बाँयी करवट लेटकर ही सोना चाहिए ।

दिन में सोना उचित नहीं किन्तु यदि सोना आवश्यक हो तो दाहिनी करवट ही लेटना चाहिए । एक बात का खूब ख्याल रखो । यदि पेय पदार्थ लेना हो तो जब चन्द्र ( बाँया ) स्वर चालू हो तभी लो | यदि सूर्य ( दाहिना ) स्वर चालू हो और आपने दूध , काफी , चाय , पानी या कोई भी पेय पदार्थ लिया तो वीर्यनाश होकर रहेगा । खबरदार ! सूर्य स्वर चल रहा हो तब कोई भी पेय पदार्थ न पियो । उस समय यदि पेय पदार्थ पीना पड़े तो दाहिना नथुना बन्द करके बाँये नथुने से श्वास लेते हुए ही पियो । रात्रि को भोजन कम करो |

भोजन हल्का – सुपाच्य हो । बहुत गर्म – गर्म और पचने वाला गरिष्ठ भोजन रोग पैदा करता है । अधिक पकाया हुआ तेल में तला हुआ , मिर्च – मसालेयुक्त , तीखा , खट्टा , चटपटेदार भोजन वीर्यनाड़ियों को क्षुब्ध करता है । अधिक गर्म भोजन और गर्म चाय से दाँत कमजोर होते हैं । वीर्य भी पतला पड़ता है । भोजन खूब चबा – चबाकर करो । थके हुए हो तो तत्काल भोजन न करो | भोजन के तुरंत बाद परिश्रम न करो | भोजन के पहले पानी न पियो । भोजन के बीच में तथा भोजन के एकाध घंटे के बाद पानी पीना हितकर होता है । रात्रि को संभव हो तो फलाहार लो | अगर भोजन लेना पड़े तो अल्पाहार ही करो । बहुत रात गये भोजन या फलाहार करना हितावह नहीं है । कब्ज की शिकायत हो तो 50 ग्राम लाल फिटकरी तवे पर फुलाकर , कूटकर , कपड़े से छानकर बोतल में भर लो | रात्रि में 15 ग्राम सौंफ एक गिलास पानी में भिगो दो | सुबह उसे उबाल कर छान लो और डेढ़ ग्राम फिटकरी का पाउडर मिलाकर पी लो | इससे कब्ज व बुखार भी दूर होता है ।

कब्ज तमाम बिमारियों की जड़ है । इसे दूर करना आवश्यक है । भोजन में पालक , परवल , मेथी , बथुआ आदि हरी तरकारियाँ , दूध , घी , छाछ , मक्खन , पके हुए फल आदि विशेष रूप से लो | इससे जीवन में सात्त्विकता बढ़ेगी | काम , क्रोध , मोह आदि विकार घटेंगे | हर कार्य में प्रसन्नता और उत्साह बना रहेगा | रात्रि में सोने से पूर्व गर्म – गर्म दूध नहीं पीना चाहिए । इससे रात को स्वप्नदोष हो जाता है । कभी भी मल – मूत्र की शिकायत हो तो उसे रोको नहीं | रोके हुए मल से भीतर की नाड़ियाँ क्षुब्ध होकर वीर्यनाश कराती हैं । पेट में कब्ज होने से ही अधिकांशतः रात्रि को वीर्यपात हुआ करता है | पेट में रुका हुआ मल वीर्यनाड़ियों पर दबाव डालता है तथा कब्ज की गर्मी से ही नाड़ियाँ क्षुभित होकर वीर्य को बाहर धकेलती हैं । इसलिये पेट को साफ रखो | इसके लिये कभी – कभी त्रिफला चूर्ण या ‘ संतकृपा चूर्ण ‘ या ‘ इसबगुल ‘ पानी के साथ लिया करो | अधिक तिक्त , खट्टी , चरपरी और बाजारू औषधियाँ उत्तेजक होती हैं , उनसे बचो | कभी – कभी उपवास करो | पेट को आराम देने के लिये कभी – कभी निराहार भी रह सकते हो तो अच्छा है |

आहारं पचति शिखी दोषान् आहारवर्जितः ।

अर्थात पेट की अग्नि आहार को पचाती है और उपवास दोषों को पचाता है । उपवास से पाचनशक्ति बढ़ती है । उपवास अपनी शक्ति के अनुसार ही करो । ऐसा न हो कि एक दिन तो उपवास किया और दूसरे दिन मिष्ठान्न लड्डू आदि पेट में हँस – हँस कर उपवास की सारी कसर निकाल दी | बहुत अधिक भूखा रहना भी ठीक नहीं ।

वैसे उपवास का सही अर्थ तो होता है ब्रह्म के परमात्मा के निकट रहना । उप यानी समीप और वास यानी रहना । निराहार रहने से भगवद्भजन और आत्मचिंतन में मदद मिलती है | वृत्ति अन्तर्मुख होने से काम – विकार को पनपने का मौका ही नहीं मिल पाता | मद्यपान , प्याज , लहसुन और मांसाहार – ये वीर्यक्षय में मदद करते हैं , अतः इनसे अवश्य बचो ।

शिश्नेन्द्रिय स्नान

शौच के समय एवं लघुशंका के समय साथ में गिलास अथवा लोटे में ठंडा जल लेकर जाओ और उससे शिश्नेन्द्रिय को धोया करो | कभी – कभी उस पर ठंडे पानी की धार किया करो | इससे कामवृत्ति का शमन होता है और स्वप्नदोष नहीं होता ।

उचित आसन एवं व्यायाम करो

स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निवास होता है । अंग्रेजी में कहते हैं : A healthy mind resides in a healthy body . जिसका शरीर स्वस्थ नहीं रहता , उसका मन अधिक विकारग्रस्त होता है । इसलिये रोज प्रातः व्यायाम एवं आसन करने का नियम बना लो | रोज प्रातः काल 3-4 मिनट दौड़ने और तेजी से टहलने से भी शरीर को अच्छा व्यायाम मिल जाता है ।

सूर्यनमस्कार 13 अथवा उससे अधिक किया करो तो उत्तम है । इसमें आसन व व्यायाम दोनों का समावेश होता है । ‘ व्यायाम ‘ का अर्थ पहलवानों की तरह मांसपेशियाँ बढ़ाना नहीं है | शरीर को योग्य कसरत मिल जाय ताकि उसमें रोग प्रवेश न करें और शरीर तथा मन स्वस्थ रहें – इतना ही उसमें हेतु है । व्यायाम से भी अधिक उपयोगी आसन हैं |

आसन शरीर के समुचित विकास एवं ब्रह्मचर्य – साधना के लिये अत्यंत उपयोगी सिद्ध होते हैं । इनसे नाड़ियाँ शुद्ध होकर सत्त्वगुण की वृद्धि होती है । वैसे तो शरीर के अलग – अलग अंगों की पुष्टि के लिये अलग अलग आसन होते हैं , परन्तु वीर्यरक्षा की दृष्टि से मयूरासन , पादपश्चिमोत्तानासन , सर्वांगासन थोड़ी बहुत सावधानी रखकर हर कोई कर सकता है । इनमें से पादपश्चिमोत्तानासन तो बहुत ही उपयोगी है । आश्रम में आनेवाले कई साधकों का यह निजी अनुभव है । किसी कुशल योग प्रशिक्षक से ये आसन सीख लो और प्रातःकाल खाली पेट , शुद्ध हवा में किया करो | शौच , स्नान , व्यायाम आदि के पश्चात् ही आसन करने चाहिए । स्नान से पूर्व सुखे तौलिये अथवा हाथों से सारे शरीर को खूब रगड़ो | इस प्रकार के घर्षण से शरीर में एक प्रकार की विद्युत शक्ति पैदा होती है , जो शरीर के रोगों को नष्ट करती है । श्वास तीव्र गति से चलने पर शरीर में रक्त ठीक संचरण करता है और अंग प्रत्यंग के मल को निकालकर फेफड़ों में लाता है । फेफड़ों में प्रविष्ट शुद्ध वायु रक्त को साफ कर मल को अपने साथ बाहर निकाल ले जाती है । बचा – खुचा मल पसीने के रूप में त्वचा के छिद्रों द्वारा बाहर निकल आता है । इस प्रकार शरीर पर घर्षण करने के बाद स्नान करना अधिक उपयोगी है , क्योंकि पसीने द्वारा बाहर निकला हुआ मल उससे धुल जाता है , त्वचा के छिद्र खुल जाते हैं और बदन में स्फूर्ति का संचार होता है ।

ब्रह्ममुहूर्त में उठो

स्वप्नदोष अधिकांशतः रात्रि के अंतिम प्रहर में हुआ करता है । इसलिये प्रातः चार – साढ़े चार बजे यानी ब्रह्ममुहूर्त में ही शैया का त्याग कर दो । जो लोग प्रातः काल देरी तक सोते रहते हैं , उनका जीवन निस्तेज हो जाता है ।

दुर्व्यसनों से दूर रहो

शराब एवं बीड़ी – सिगरेट – तम्बाकू का सेवन मनुष्य की कामवासना को उद्यीप्त करता है । कुरान शरीफ के अल्लाहपाक त्रिकोल रोशल के सिपारा में लिखा है कि शैतान का भड़काया हुआ मनुष्य ऐसी नशायुक्त चीजों का उपयोग करता है । ऐसे व्यक्ति से अल्लाह दूर रहता है , क्योंकि यह काम शैतान का है और शैतान उस आदमी को जहन्नुम में ले जाता है । नशीली वस्तुओं के सेवन से फेफड़े और हृदय कमजोर हो जाते हैं , सहनशक्ति घट जाती है और आयुष्य भी कम हो जाता है । अमरीकी डॉक्टरों ने खोज करके बतलाया है कि नशीली वस्तुओं के सेवन से कामभाव उत्तेजित होने पर वीर्य पतला और कमजोर पड़ जाता है ।

सत्संग करो

आप सत्संग नहीं करोगे तो कुसंग अवश्य होगा । इसलिये मन , वचन , कर्म से सदैव सत्संग का ही सेवन करो । जब – जब चित्त में पतित विचार डेरा जमाने लगें तब तब तुरंत सचेत हो जाओ और वह स्थान छोड़कर पहुँच जाओ किसी सत्संग के वातावरण में , किसी सन्मित्र या सत्पुरुष के सान्निध्य में | वहाँ वे कामी विचार बिखर जायेंगे और आपका तन – मन पवित्र हो जायेगा । यदि ऐसा नहीं किया तो वे पतित विचार आपका पतन किये बिना नहीं छोड़ेंगे , क्योंकि जो मन में होता है , देर – सबेर उसीके अनुसार बाहर की क्रिया होती है । फिर तुम पछताओगे कि हाय ! यह मुझसे क्या हो गया ? पानी का स्वभाव है नीचे की ओर बहना । वैसे ही मन का स्वभाव है पतन की ओर सुगमता से बढ़ना | मन हमेशा धोखा देता है । वह विषयों की ओर खींचता है , कुसंगति में सार दिखता है , लेकिन वह पतन का रास्ता है । कुसंगति में कितना ही आकर्षण हो , मगर … जिसके पीछे हो गम की कतारें , भूलकर उस खुशी से न खेलो | अभी तक गत जीवन में आपका कितना भी पतन हो चुका हो , फिर भी सत्संगति करो | आपके उत्थान की अभी भी गुंजाइश है । बड़े – बड़े दुर्जन भी सत्संग से सज्जन बन गये हैं । शठ सुधरहिं सत्संगति पाई । सत्संग से वंचित रहना अपने पतन को आमंत्रित करना है । इसलिये अपने नेत्र , कर्ण , त्वचा आदि सभी को सत्संगरूपी गंगा में स्नान कराते रहो , जिससे कामविकार आप पर हावी न हो सके ।

शुभ संकल्प करो

” हम ब्रह्मचर्य का पालन कैसे कर सकते हैं ? बड़े – बड़े ऋषि – मुनि भी इस रास्ते पर फिसल पड़ते हैं …. – इस प्रकार के हीन विचारों को तिलांजलि दे दो और अपने संकल्पबल को बढ़ाओ | शुभ संकल्प करो | जैसा आप सोचते हो , वैसे ही आप हो जाते हो । यह सारी सृष्टि ही संकल्पमय है । दृढ़ संकल्प करने से वीर्यरक्षण में मदद होती है और वीर्यरक्षण से संकल्पबल बढ़ता है ।

विश्वासो फलदायकः

जैसा विश्वास और जैसी श्रद्धा होगी वैसा ही फल प्राप्त होगा । ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों में यह संकल्पबल असीम होता है । वस्तुतः ब्रह्मचर्य की तो वे जीती – जागती मुर्ति ही होते हैं ।

त्रिबन्धयुक्त प्राणायाम और योगाभ्यास करो

त्रिबन्ध करके प्राणायाम करने से विकारी जीवन सहज भाव से निर्विकारिता में प्रवेश करने लगता है । मूलबन्ध से विकारों पर विजय पाने का सामर्थ्य आता है । उड्डियानबन्ध से आदमी उन्नति में विलक्षण उड़ान ले सकता है | जालन्धरबन्ध से बुद्धि विकसित होती है ।

अगर कोई व्यक्ति अनुभवी महापुरुष के सान्निध्य में त्रिबन्ध के साथ प्रतिदिन 12 प्राणायाम करें तो प्रत्याहार सिद्ध होने लगेगा | 12 प्रत्याहार से धारणा सिद्ध होने लगेगी । ध ारणा – शक्ति बढ़ते ही प्रकृति के रहस्य खुलने लगेंगे | स्वभाव की मिठास , बुद्धि की विलक्षणता , स्वास्थ्य की सौरभ आने लगेगी | 12 धारणा सिद्ध होने पर ध्यान लगेगा , सविकल्प समाधि होने लगेगी । सविकल्प समाधि का 12 गुना समय पकने पर निर्विकल्प समाधि लगेगी । इस प्रकार छः महीने अभ्यास करनेवाला साधक सिद्ध योगी बन सकता है । रिद्धि सिद्धियाँ उसके आगे हाथ जोड़कर खड़ी रहती हैं । यक्ष , गंधर्व , किन्नर उसकी सेवा के लिए उत्सुक होते हैं | उस पवित्र पुरुष के निकट संसारी लोग मनौती मानकर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं | साधन करते समय रग – रग में इस महान् लक्ष्य की प्राप्ति के लिए धुन लग जाय | ब्रह्मचर्य व्रत पालने वाला साधक पवित्र जीवन जीनेवाला व्यक्ति महान् लक्ष्य की प्राप्ति में सफल हो सकता है ।

हे मित्र ! बार – बार असफल होने पर भी तुम निराश मत हो | अपनी असफलताओं को याद करके हारे हुए जुआरी की तरह बार – बार गिरो मत | ब्रह्मचर्य की इस पुस्तक को फिर – फिर से पढ़ो | प्रातः निद्रा से उठते समय बिस्तर पर ही बैठे रहो और दृढ़ भावना करो : “ मेरा जीवन प्रकृति की थप्पड़ें खाकर पशुओं की तरह नष्ट करने के लिए नहीं है । मैं अवश्य पुरुषार्थ करूँगा , आगे बढूँगा | हरि ॐ … ॐ … ॐ …

मेरे भीतर परब्रह्म परमात्मा का अनुपम बल है |ॐ … ॐ … ॐ …

तुच्छ एवं विकारी जीवन जीनेवाले व्यक्तियों के प्रभाव से मैं अपनेको विनिर्मुक्त करता जाऊँगा | ॐ … ॐ … ॐ …

सुबह में इस प्रकार प्रयोग करने से चमत्कारिक लाभ प्राप्त कर सकते हो । सर्वनियन्ता सर्वेश्वर को कभी प्यार करो कभी प्रार्थना करो कभी भाव से विह्वलता से आर्तनाद करो | वे अन्तर्यामी परमात्मा हमें अवश्य मार्गदर्शन देते हैं | बल बुद्धि बढ़ाते हैं | साधक तुच्छ विकारी जीवन पर विजयी होता जाता है । ईश्वर का असीम बल तुम्हारे साथ है |

निराश मत हो भैया ! हताश मत हो । बार – बार फिसलने पर भी सफल होने की आशा और उत्साह मत छोड़ो । शाबाश वीर ! शाबाश … ! हिम्मत करो , हिम्मत करो | ब्रह्मचर्य सुरक्षा के उपायों को बार – बार पढ़ो , सूक्ष्मता से विचार करो | उन्नति के हर क्षेत्र में तुम आसानी से विजेता हो सकते हो । करोगे न हिम्मत ? अति खाना , अति सोना , अति बोलना , अति यात्रा करना , अति मैथुन करना अपनी सुषुप्त योग्यताओं को धराशायी कर देता है , जबकि संयम और पुरुषार्थ सुषुप्त योग्यताओं को जगाकर जगदीश्वर से मुलाकात करा देता है ।

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